अरुण सिंह ‘क्रान्ति’ की रचनाओं में मुख्य सरोकार हैं : मातृभक्ति, राष्ट्रीयता, प्रेम, मानस-मंथन और आत्मबोध| यह भी कहा जा सकता है कि ये उनकी काव्य-सृष्टि के पंच-तत्त्व हैं| कहीं स्वतन्त्र रूप में, तो कहीं सम्मिलित होकर ये तत्त्व उनकी रचनाओं को अलंकृत करते हैं|
उनकी मातृभक्ति माँ के लौकिक रूप से लेकर पारलौकिक देवी-स्वरूप और सांस्कृतिक राष्ट्र-स्वरूप तक व्याप्त है| उनकी रचनाओं में स्त्री के विविध रूपों के प्रति श्रद्धा व स्त्री की संवेदनाओं का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है| उनकी राष्ट्रीयता इतिहास से प्रेरणा लेकर, वर्तमान को साध कर भविष्य सुधारने पर बल देती है| कवि ने एक शहीद के अन्तिम उद्गारों से लेकर शहीदों की राख में दबे अग्निकणों के शोधन व शहीदों को बेच देने वाले समाज की आलोचना तक और लोकतंत्र व राजनीति के खुले घावों तक की खबर रखी है|
प्रेम के हर भाव, जैसे निवेदन, मोहन, उद्वेलन, संवेदन, श्रृंगार, प्रीति, रति और विरह आदि से परिपूर्ण इनकी रचनाएँ पाठकों को प्रेम-सिंधु की अनंत गहराइयों में डूब जाने को और प्रेमलोक की वीथियों में खो जाने को अनायास ही प्रेरित कर देती हैं| प्रेम के विराट-स्वरूप को स्वीकार कर कवि ने किसी प्रेमी-युगल की क्रीड़ा, ऋतु-सौंदर्य तथा सामाजिक प्रेम व सौहार्द्र को भी प्रेम से ही जोड़ा है| कवि का आत्मबोध युक्त मानस-मंथन वास्तव में ही आत्मानुभूति व मानसिक शान्ति रुपी रत्नों को प्रगट करने वाला है|
– प्रकाशक
ISBN: 9789381542194 | श्रेणी : काव्य भाषा : हिंदी | प्रारूप : पत्रावरणबद्ध | पुस्तक प्रकाशन वर्ष : 2011 | प्रकाशक : CinnamonTeal Publishing | कविताएँ : 50 | पृष्ठ : 176 | मूल्य : Rs. 250/-
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